Thursday, 24 February 2022

श्याम सिंघा रॉय (मूवी समीक्षा)

जरूर देखें।

(श्याम सिंघा रॉय) 
हाल ही में अभिनेता नानी की तेलुगू मूवी रिलीज हुई है उसका नाम है श्याम सिंघा रॉय..
पुनर्जन्म पर आधारित 2.35 घंटे की ये कहानी आपको एक पल के लिए भी स्क्रीन से हटने नहीं देगी।
कहानी की शुरुआत वासु के किरदार से होती है जो डायरेक्टर बनना चाहता है लेकिन कहानी का अहम हिस्सा वासु का श्याम सिंघा रॉय होना ही है,
कलम की ताकत समाज में क्या बदलाब ला सकती है वो इस मूवी के माध्यम से समझा जा सकता है, समाज के हर बदलाब में हमेशा कलम का हाथ रहा है, कलम प्रेरणा देती है समाज की सच्चाई को लिखने की, वर्तमान परिपेक्ष्य में लेखकों के लिए एक प्रेरणादायी संदेश है ये मूवी...
ये मूवी भारतीय समाज की दूषित परंपराओं पर भी करारा प्रहार करती है, समाज में दलित होना एक अपराध सा है, 70 के दशक के दिखाए गए दृश्य की सच्चाई आज भी अखबार में आने वाली खबरों से प्रमाणित होती है, 50 साल बाद भी हम खुद को नहीं बदल पाए है, सोचने पर मजबूर करती है ये मूवी..
देवदासी प्रथा, कहने को तो भगवान की पत्नी के रूप में इन्हें माना गया लेकिन इस घिनौनी प्रथा के नाम पर कितनी महिलाओं के साथ बलात्कार होते रहे कितनी छोटी बच्चियों को बेरहमी से कुचला गया शायद आज भी इस तरह की कुप्रथाएं चलन में है, समाज में कोई भी कुप्रथाएं हो हमारा फर्ज बनता है कि उसके खिलाफ आवाज उठाएं..
बुलंद आवाज को रोकने के लिए परिवार वालों का ही खलनायक हो जाना बरसों से चला आ रहा है एक घटनाक्रम है जिसमें सिर्फ किरदार बदलते रहे है, समाज के नाम पर या तो डर कर या फिर डरा कर अपनों को ही सामने लाया जाता है,इस मूवी में भी यही दिखाया गया है जो एक कड़वा सच है कब तक हम ऐसा करते रहेंगे,अब हमें खुद को बदलना होगा और देना होगा साथ हर बुलंद आवाज का....
ये मूवी हमको दिखाती है अवचेतन से चेतना की ओर जाने का रास्ता, वहीं चेतना जो हमको इंसान बनाती है,  "ये समाज इंसान से बना है ना कि इंसान इस समाज से" समाज के नियम कायदे वक्त के हिसाब से बदले जाने चाहिए लेकिन ये संभव तब होगा जब हम चेतन अवस्था में आएंगे, पढे लिखे मूर्ख लोगों की भीड़ है हम, हमको अखबार की एक खबर गुमराह कर देती है क्योंकि हम हमेशा अवचेतन रहे है, अब जागने का वक्त है..
किरदार के रूप में बात करे तो नानी(नवीन बाबू) का काम हमेशा काबिल ए तारीफ रहा है, वासु से लेकर श्याम सिंघा रॉय बनने तक हर जगह उन्होंने छाप छोड़ी है, वासु में अपनी काबिलियत से कुछ करने का जुनून है तो श्याम में भगत सिंह सी निडरता है, कीर्ति शेट्टी एक उभरती हुई साउथ एक्ट्रेस है जिन्होंने अपने किरदार के साथ न्याय किया है, साईं पल्लवी एक मंझी हुई अदाकारा है देवदासी से रोज़ी तक के सफर में उनके चेहरे के भाव दर्शकों को हमेशा आकर्षित करेंगे, कीर्ति शेट्टी की मोहक अदाओं के जादू को एक चुटकी में गायब कर देते है साईं पल्लवी के भाव, मैडोना सेबेस्टियन और मुरली शर्मा एडवोकेट की भूमिका में शानदार रहे है, मैडोना अदाकारा और गायिका दोनों है, मूवी का प्रत्येक पात्र दर्पण की तरह है जो हमको हमारे समाज के 50 साल के चरित्र को दिखाता है और हमको महसूस करवाता है कि क्या हमने कुछ बदलाव किया है या आज भी हम उस ही दहलीज पर खड़े है..
पुनर्जन्म को हिंदू, बौद्ध और जैन संस्कृति ने भी स्वीकार किया है, वैज्ञानिक आधार पर ये नहीं माना जाता रहा है लेकिन 1935 में शांति देवी मामले में हमारे देश के महानतम वकील और राष्ट्रपिता कहलाने वाले महात्मा गांधी जी, जो उस जांच कमेटी के अध्यक्ष रहे, ने उन्हें लुगदी देवी का पुनर्जन्म माना था। 
मूवी किसी सत्य घटना पर आधारित नहीं है लेकिन समाज की सच्चाई को बेनकाब करके असली चेहरे को दिखाने का काम करती है।

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