Thursday, 10 March 2022

मैं जो हूं जॉन एलिया हूं : डॉ. कुमार विश्वास

बहुत दिल को कुशादा कर लिया क्या
ज़माने भर से वादा कर लिया क्या
तो क्या सचमुच जुदाई मुझ से कर ली
ख़ुद अपने को आधा कर लिया क्या..

जॉन एलिया साहब का ये शेर जब भी याद आता है बरबस गुजरा जमाना याद आता है, डॉ कुमार विश्वास ही नहीं बल्कि तमाम जॉन को पढ़ने वाले अक्सर यही बात कहते है। जॉन साहब कहते थे कि आप मुझसे दूर ही रहिए क्योंकि " मैं जो हूं,
                      जॉन एलिया हूं।"
कुमार ने इन्हें शायरी का चे ग्वेरा कहा है। उन्होंने कहा कि मैं जो हूं, जैसा भी हूं, मुझे ऐसा ही स्वीकार कीजिए। खुदरंग इंसान जिस पर कभी दूसरा रंग चढ़ ही नहीं सकता, खुद अपने आप में बेमिसाल।
 "वही हिसाबे तमन्ना है अब भी आ जाओ
वही है सर वही सौदा है, अब भी आ जाओ
जिसे गए हुए खुद से अब इक जमाना हुआ
वो अब तुम में खटकता है, अब भी आ जाओ"
 
जॉन सारा जीवन एक अजीब सी उदेड़बुन में लगे रहे शायद उस जमाने के लोग उन्हें समझ ही नहीं पाए
" तू अगर आइयो तो जाइयो मत
और अगर जाइयो तो आइयो मत"

अमरोहा की मिठास पाकिस्तान जानें के बाद भी कम ना हो सकी,जॉन चले गए लेकिन हिंदुस्तान के लिए आने वाला कल छोड़ के गए।
जब से हिंदुस्तानी युवा ने जॉन को सुना है दीवाना हुए फिरता है, चंद शेरों में एक शेर जॉन का मिलता ही है।
 ये पढ़िए
"सारी दुनिया के गम हमारे है
उस पर सितम ये कि हम तुम्हारे है
और तो हम ने क्या किया अब तक
ये किया है कि दिन गुजारे है"।

अब आप ही बताइए इन चंद अल्फाजों में जॉन आपका आईना बन गए या नहीं, जवाब हां ही होगा। और हा एक बात ये भी करामात है कि जिसने एक बार जॉन को पढ़ लिया फिर उसने कभी जॉन को छोड़ा नहीं, आदमी के एकाकी जीवन के दुर्लभ क्षणों के आवेश को जॉन ने हर्फ हर्फ उतारा है फिर कोई कैसे जुदा हो।
मन तो ये है कि लिखते ही जाए लेकिन वर्णों में जॉन को समेटना नामुमकिन है फिर भी एक मिसरा तो कह ही देते है 
"ख़ुद से हम इक नफस हिले भी कहां
उस को ढूंढे तो वो मिले भी कहां
गम न होता जो खिल के मुरझाते
गम तो ये है कि हम खिले भी कहां।"

लेकिन आप क्यों मुरझा रहे है आप तो जॉन को पढ़ते रहिए और मुस्कुराते रहिए 💕

Tuesday, 8 March 2022

Break the Bias (महिला दिवस) विशेष

स्त्री वो, जो आदमी के शर्ट के टूटे बटन से लेकर टूटा हुआ आत्म विश्वास तक जोड़ दे

कभी सोचा है कि महिलाओं के लिए अलग से एक दिवस बनाने की क्यों आवश्यकता पड़ी, कई तो महिला दिवस से आंकलन महिलाओं के लिए साल में एक ही दिन आता है, इससे भी लगाते है, देखा जाए तो हर दिन महिला दिवस ही तो है, पुरुष प्रधान समाज के दिमाग में सुबह के जागने से लेकर सोने तक कोई छवि घूमती है तो महिला ही तो है बस उसके रूप अलग अलग होते है कभी मां, बहन, पत्नी, दोस्त या फिर जैसा हम मस्तिष्क में सोच लेते है । लेकिन सच्चाई में यह दिवस हमको याद दिलाता है कि हमारी सृष्टि की बागड़ोर जिसके हाथ में है उनके लिए क्यों न एक स्पेशल दिन रखा जाए और उत्सव की तरह मनाया जाए, वैसे हमारे बीच मातृ सत्तात्मक सोच रखने वाले बहुत कम लोग ही होंगे।
महिलाओं के लिए वर्तमान समाज में कोई विशेषाधिकार की आवश्यकता नहीं है लेकिन जो मूलभूत जरूरतें है उन्हें तो इस समाज द्वारा पूरा किया जाना चाहिए।
महिला उत्थान के लिए कोई स्पेशल भाषण देना मुझ पर नहीं आता लेकिन मूवी के माध्यम से जब भी महिलाओं के अधिकारों की बात रखी जाती है तो दिल करता है हर महिला इसको देखे और हर पुरुष महसूस करे।

NH 10, कहानी, पिंक, थप्पड़ जैसी मूवी हमने देखी और उनके अंदर के दर्द को महसूस भी किया, लेकिन क्या समाज की सोच में कुछ परिवर्तन हुआ है, इसका जवाब शायद ही हां मिले, थोड़ा सा हुआ होगा वो भी सिर्फ युवा वर्ग, क्योंकि ये वर्ग सक्रिय है और वो  ये सब महसूस करता है क्योंकि उन्हे ये महसूस करवाने और बहस करने के लिए लड़कियों का एक वर्ग मौजूद है, ऐसा हमसे पहले वाली पीढ़ी में नहीं है इसलिए उन्हें समझाना आज भी उतना ही चुनौती पूर्ण है और उनके साथ महिला वर्ग भी है।
कुछ मुद्दे ऐसे भी होते है जिन्हें उठाने से पहले हम सोच लेते है कि दुनिया क्या कहेगी जैसे हमने PADMAN मूवी में देखा था और जब वो मुद्दा सार्वजनिक बहस का मुद्दा बन जाता है तो हम उसका समर्थन करने लगते है।

कुछ मूवी है जिन्हें पुरुष वर्ग को गौर से देखना चाहिए और सोचना चाहिए कि ये मूवी क्यों बनाई गई, जैसे ,
Dolly Kitty Aur Woh Chamkte Sitare, Is Love Enough?Sir, rat akeli hai, जब हम इन्हें देखेंगे तो  सोचेंगे की शायद इसके लिए हम ही जिम्मेदार है और सच में हम ही है। महिला वर्ग भी देखें तो शायद उनकी चेतना में भी जागृति आयेगी कि ये मुद्दे भी समाज के सामने रखे जाने चाहिए,
हॉरर मूवी के माध्यम से भी कभी कभी समाज को संदेश दिया जाता है मैंने कुछ दिन पूर्व ही Bulbbul & Chhorii मूवी देखी, हो सके तो जरूर देखना थोड़ी सी डरावनी जरूर है लेकिन इनके पीछे दर्द को महसूस करना। बुलबुल हमको स्त्री का स्त्री होना बतलाती है वही छोरी मूवी में पुरानी प्रथा के समर्थन में कैसे महिला ही महिला के उत्थान में बाधक बन जाती है ये दिखलाया है।
अब महिला या पुरुष के सोचने का विषय नही रहा, अब सोचना चाहिए कि समाज के दकियानूसी नियम जो वर्षों पहले पुरुष प्रधान समाज ने अपनी लंगोट बचाने के लिए बनाए थे उन्हें हटाने के लिए महिलाओं से पहले पुरुष को ही पहल करनी चाहिए।
समाज के नियम सामाजिक उत्थान के लिए बनाए जाते है लेकिन उनकी एक वैलिडिटी होती है जब समाज के नियम समाज में उत्थान की बजाय पतन का काम करने लगे तो समझ लेना चाहिए इन्हें बदलने का वक्त आ गया है लेकिन हम विरोध करने वाले को दबाने वाली श्रेणी के लोग है इसलिए सबसे पहले हमको खुद की गिरेबां में झांक कर देखना चाहिए ताकि समाज में बदलाब का हिस्सा बन सके।
कोई किसी से कम नहीं, सबको समानता जैसे मुहावरे समाज के मुख्य भाग होने चाहिए, अगर हम समाज की विकृत सोच को बदल पाए तो सही मायने में महिला दिवस वही होगा। 
                              जय हिंद।

Monday, 7 March 2022

Hawaizaada मूवी समीक्षा : भारत का हवाई सफर

दिल ए नादान तुझे हुआ क्या है,
आखिर इस दर्द की दवा क्या है, 
हम है मुश्ताक और वो बे ज़ार, 
या इलाही ये माजरा क्या है...
कल यूहीं बैठे बैठे मिर्ज़ा गालिब साहब की ये ग़जल याद आई तो बरबस ही गूगल पर सर्च कर डाला और जो परिणाम सामने आए वो बेहद ही चौंकाने वाले थे आयुष्मान खुराना ने किसी Hawaizaada मूवी में इस ग़जल को गाया है, गाने के साथ साथ मूवी का टाईटल देखा तो और माथा ठनका फिर सोचा क्यों न आज ये मूवी देखी जाए, बस फिर हो गए शुरू....
चलो अब मूवी पर आते है
साल 2015 के आखिर में रिलीज हुई ये मूवी अपने अंदर बहुत सारा इतिहास और वैदिक शास्त्र समेटे हुए है, साथ ही ये मूवी आपको वैश्विक एवम भारतीय विमान निर्माण के इतिहास को समझने का दृष्टिकोण भी प्रस्तुत करती है, वैसे शुरुआत के 10 मिनट शायद आप बोर भी हो सकते हो लेकिन मूवी के पात्रों को समझने के लिए देखना जरूरी होगा।
शिवकर बापू जी तलपड़े शायद आपने ये नाम सुना हो मैंने इस मूवी से पहले ये नाम नहीं सुना था, शिवकर बापू जी तलपड़े भारतीय विद्वान थे जिन्होंने सबसे पहले मानव रहित विमान का निर्माण किया है, हवाई जहाज का जनक चाहे राइट बंधु को माना गया हो लेकिन शिवकर बापू ने राइट बंधु से 8 साल पहले इस तरह का विमान निर्माण कर लिया था जो जुहू बीच पर लगभग 1500 फीट की ऊंचाई तक उड़ा था, उनके विमान बनाने की घटना पर आधारित इस मूवी में विमान बनाने के शास्त्रीय ज्ञान के साथ साथ कालिदास कृत अभिज्ञान शकुंतलम के नाटक को भी दिखाया गया है।
शिवकर बापू के गुरु के रूप में मिथुन चक्रवर्ती उर्फ शास्त्री जी का किरदार काबिल ए तारीफ है, मूवी में उनके पास बताई गई विमान शास्त्र की किताब महर्षि भारद्वाज द्वारा लिखित प्राचीन भारतीय विमान शास्त्र ही है ऐसा मेरा और दर्शकों का भी अनुमान रहेगा, शिवकर के किरदार के साथ आयुष्मान खुराना पूर्णरूप से न्याय करते नजर आते है, भारतीय मूल की ऑस्ट्रेलियाई अभिनेत्री पल्लवी शारदा ने अपने संवाद से अलग की जान फूंकी है
"प्यार में डूबा हुआ आदमी अपनी औकात से ज्यादा काम कर जाता है"
बड़ौदा महाराज द्वारा अंग्रेज गुलामी में भी भारतीयों की मदद करते रहना और साथ साथ ही शिवकर के साथी खान द्वारा शिवकर बापू को मदद, ये मूवी के वो अहम हिस्से है जिन पर सबसे ज्यादा ध्यान देने की जरूरत है, एक हिस्सा गुलाम राजा में स्वाधीनता की ललक को दिखाता है और दूसरा हिस्सा हिंदू मुस्लिम एकता को प्रदर्शित करता है
मूवी में लोकमान्य तिलक द्वारा शुरू किए गए गणेश महोत्सव को भी दिखाया गया है।
अंग्रेजी सत्ता के समय की ये कहानी शायद अब सोचने या देखने पर थोड़ी सी बचकानी लगे लेकिन खुद को उस समय के अनुसार डाल कर देखने पर भारतीय इतिहास को गौर से समझने पर विवश कर देती है,
समर्पण इस मूवी की आत्मा है जो शास्त्री जी, शिवी और सितारा को एक सूत्र में पिरोए रखती है।
मूवी सत्य घटना पर आधारित है या नहीं, इसके बारे में मेरे विचार शून्य है लेकिन शिवकर बापू जी के भारतीय विमान बनाने के दावे से इंकार नहीं किया जा सकता है
निर्देशक विभु पूरी जी ने मूवी को उच्च संवाद और शालीनता के साथ बनाया है, मिर्जा गालिब साहब की ग़जल के साथ डाक टिकट वाले गाने ने अपना जादू बिखेरा है, उड़ जायेगा हंस अकेला गाना मूवी के मार्मिक दर्द को बयां करता है।
2 घंटे 9 मिनट की मूवी से इतिहास के साथ साथ वैज्ञानिक दर्शन और मार्मिक संवाद का मिश्रण शायद पहली बार देखने को मिलता है। 
                            वंदे मातरम् ।