Saturday, 15 July 2017

यादों के झरोखों से...

इस कहानी का संबंध किसी भी व्यक्ति विशेष से नहीं है।

"रात में सपने में आई कोई लड़की नींद खुलते ही आंखो के सामने नजर आ जाए तो ऐसा लगेगा जैसे रात में सपना नहीं हकीकत को देख लिया हो..
चलिए अब कहानी पर आ जाते है
ये स्कूल के दिनों की बात हुआ करती थी, हम एक ही क्लास में थे लेकिन अलग अलग जगह, उनका ठिकाना दूसरे शहर में था और हम भी अब गांव की जगह स्कूली दीक्षा के लिए भरतपुर आ गए थे ।
मुझे याद तो नहीं है कि हमारी पहली मुलाकात कब हुई थी लेकिन गांव के स्कूल में पढ़ने जाते टाइम उनका मिल जाना याद है और उसके बाद का झगड़ा भी याद है, झगड़ा क्या कहे मीठी तकरार कह लीजिए। बचपन में जिनके साथ हम झगड़ते है वो ही बाद में हमारे सबसे अच्छे दोस्त बन जाते है यहां भी कुछ ऐसा ही हुआ था, फिर हमारा गांव का स्कूल छूट गया और उनका भी शहर जाना हो गया,अब शीतकालीन अवकाश या गर्मियों की छुट्टियों में जब वो आते तब ही हम साथ साथ खेल सकते थे, खेलकूद के किस्से भी बहुत है लेकिन उनका जिक्र कभी बाद में करेंगे।
10 वी क्लास की बात थी इस बार जब हम गांव आए तो हमारे मन के ख्याल कुछ बदले बदले नजर आ रहे थे शायद किशोर अवस्था का रंग चढ़ने लगा था, बार बार जब भी रास्ते से गुजरते उनके घर की तरफ ही नजरे चली जाती थी, लगता था नजरे उन्हें तलाशना चाह रही हो, कुछ कहना चाह रही हो लेकिन वो तो थे ही नहीं। बरबस नज़रों में एक उदासी का मंजर छाया रहा। अब तो बस गर्मियों में उनसे मिलने का इंतजार था, इस इंतजार में कब दिसंबर से मई का महीना आ गया पता ही नहीं चला, बोर्ड के एग्जाम पेपर में कभी कभी प्रश्न का जवाब न आने पर सोचते टाइम उनका चेहरा जरूर याद आ जाता था।
इस बार
गर्मियों के दिनों में जब हम गांव आए तो बस सारे दिन उनके घर पर नजर रखते ताकि उनके आने पर पहला दीदार हमारा हो। एक एक दिन का इंतजार हमें और ज्यादा बैचेन और बेताब किए जा रहा था,उनसे कैसे हम हमारी उत्सुकता जाहिर करेंगे और उनका क्या रिएक्शन होगा कहीं वो खफा तो नहीं हो जायेंगे ये सोच सोच के खून सुखा जाता था।
एक दिन अलबत्ता सुबह हम दोस्त के घर अखबार पढ़ रहे थे कि हमें एक गाड़ी आती हुई नजर आई, गाड़ी के नंबर उनके शहर के लग रहे थे इसलिए उत्सुकता में हम नज़र गड़ा के देखते रहे और गाड़ी के कांच से जैसे ही उनका चेहरा नजर आया मन के अंदर खुशी और डर का अजीब सा माहौल बनने लग गया,ज्यादातर उनसे मिलना शाम के वक्त ही होता था या फिर वो सबके घर मिलने आ जाया करते थे, सुबह से शाम होने का इंतजार हमें अंदर से खाया जा रहा था हमसे वो कुछ पल काटने में बरसों जितना समय लगा,शाम का वक्त अब हो चला था और हमारे हृदय में उन्हें करीब से देखने की इच्छा और भी प्रगाढ़ हुई जा रही थी, गांव में कोई भी बाहर से आए तो एक दो दिन तक उनका अजनबी जैसा हाल होता है फिर धीरे धीरे सबके साथ हिलना मिलना होता है । उनका भी हाल कुछ अजनबी जैसा ही था, जब शाम को हम उनसे मिले तो काफी देर तक कुछ नही बोल पाए सिर्फ उन्हे देखते रहे और मुस्कुराते रहे।
अचानक उनके एक सवाल से हमारे अवचेतन में चेतना हुई,
कैसे हो? अब इस सवाल का जवाब हमसे देते नहीं बन रहा था कि उन्हें क्या कहे और क्या न कहे। अच्छा हूं, ये कहते हुए बातचीत का सिलसिला चालू हुआ,फिर शुरू हुई स्कूल की बातें, उनके शहर की बातें, हमारे हॉस्टल की बातें।
लेकिन हम स्पष्ट रूप से उनसे कुछ नही कह पाए और वो नादान भी हमारी भावनाएं नहीं समझ पाई, इस तरह उन्हें देखते निहारते गर्मियों की छुट्टियों के दिन हंसी खुशी गुजरते गए, अब उनके और मेरे बापिस जाने का वक्त आ गया था, बार बार बस एक ही ख्याल आ रहा था कि उनसे कह ही देते है जो भी होगा देखा जायेगा लेकिन उनके मनाही कर देने पर हमेशा के लिए दोस्ती के खत्म हो जाने का डर हमारे दिल में घर कर गया था।
फिर वो दिन आ गया,आज वो जाने वाले थे और हम उनसे कुछ नही कह पाए थे बस ऊपर से हंसते हुए अंदर से टूटे हुए उन्हें जाते हुए देखते रहे।
हमें क्या पता था कि इस मुलाकात की यादें इतने लंबी हो जायेगी, फिर उनसे मिलना ही नहीं हुआ और मिलने का इंतजार बढ़ता ही चला गया,स्कूल के बाद कॉलेज भी खत्म होने जा रहा था और हम अब भी उनके इंतजार में थे, हां उनकी एक झलक पाने के लिए हम उनके शहर तक जाने लगे थे लेकिन वो कुछ गलत ना समझ ले इसलिए उन्हें चुपके से देख कर दिल को तसल्ली दे लेते थे, उसके बाद बहुत से और भी पड़ाव आए जिंदगी में, जिदंगी है तो घटनाएं है इस कहानी में भी बहुत से उतार चढ़ाव है, धीरे धीरे उन्हें भी साझा किया जायेगा।

लेकिन 8 साल बाद जिंदगी में एक दिन ऐसा आया कि हमारी उनसे बात हुई, सब कुछ बदल चुका था लेकिन हमारे दिल के अरमान अभी भी पहले जैसे ही थे..

फिर बातें हुईं, मुलाकातें हुई और प्यार का इजहार भी हुआ, कहानी में बहुत दिलचस्प घटनाएं भी हुई, 10 वीं कक्षा से लेकर 8 साल तक के इस इंतजार के सफर में बहुत से यादगार लम्हें भी आए जिनको फिर कभी लिखेंगे,आज के लिए इतना ही काफी।

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